International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

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भारतीय संगीत एवं प्रकृति

    1 Author(s):  DR. (MRS) VANDANA AGARWAL

Vol -  9, Issue- 7 ,         Page(s) : 97 - 99  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

अर्थात् गोपी पति (श्री कृष्ण) भी गीत की ध्वनि के वशीभूत हैं। ब्रह्मा जी को साम गान प्रिय है तथा सरस्वती जी वीणा पर आसक्त हैं। उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि जब हमारे देवी-देवता भी संगीत के प्रभाव से अछूते नहीं हैं तब साधारण मनुष्य पर इसका समुचित प्रभाव न पड़े ऐसा कैसे सम्भव है? वस्तुतः संगीत कला का आधार नाद है जो सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है यही कारण है कि स्वस्थ एवं कर्णप्रिय संगीत पूरे चर-अचर को प्रभावित करता है। संगीत के मुख्य आधार स्वर तथा लय हैं। यदि सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाए तो मानव-जीवन का आधार भी स्वर अर्थात् ध्वनि एवं लय अर्थात् श्वास या नाड़ी की गति है। जब तक मानव में ये चीजें विद्यमान रहती हैं तब तक मानव जीवित रहता है तथा इनके समाप्त होते ही मनुष्य मृत कहलाता है। इस प्रकार यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि मानव-जीवन का दूसरा नाम संगीत ही है संगीत मनुष्य की चिंताओं, रोगों, परेशानियों एवं दुर्बलताओं आदि को दूर करने का एक मनोवैज्ञानिक साधन है। मुंशी प्रेमचन्द जी के इस संबंध में अमूल्य शब्द इस प्रकार हैं-

भारतीय संगीत - एक वैज्ञानिक विश्लेषण: स्वतंत्र शर्मा
भारतीय संस्कृति: डाॅ. लल्लन जी गोपाल
संगीत पत्रिका
संगीत कला विहार

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