International Research journal of Management Science and Technology
ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
शिक्षा प्रणाली में संगीत की आवश्यकता
1 Author(s): DR. (MRS) VANDANA AGARWAL
Vol - 10, Issue- 1 , Page(s) : 66 - 70 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
देखा जाए तो मानव जीवन में प्रत्येक कला का महत्वपूर्ण स्थान दृष्टिगोचर होता है, परंतु संगीत कला का महत्व सर्वोपरि परिलक्षित होता है। मानव जीवन के विषय में क्या कहें, यह सम्पूर्ण जगत ही नादमय है, सम्पूर्ण प्रकृति संगीत से प्रभावित है। मानव जीवन पूर्णतया संगीतमय है। जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु पर्यन्त मानव जीवन में संगीत का स्थान है। अतः हर्षोल्लास के साथ ही शोक-संतप्त मानव के जीवन में भी संगीत अपना स्थान रखता है। इस प्रकार विभिन्न समय, परिस्थिति, स्थान एवं पर्व के अनुसार सांगीतिक विभिन्नता होती है, परंतु कोई भी कार्य संगीत के बिना सम्पन्न नहीं होता। प्रारंभ काल से ही हमारे समाज में संगीत मात्र मनोरंजन करने की कला के रूप में ही विद्यमान नहीं रहा, वरन् गणित, समाजशास्त्र, दर्शन, व्याकरण, मीमांसा, आदि जैसे गम्भीर तथा व्यापक चिन्तन के विषयों के समान ही मानव के चहुँमुखी विकास तथा सुसभ्य एवं संस्कारयुक्त समाज के परिचायक के रूप में एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययनशील विषय स्वीकार किया गया है। संगीत शिक्षा का हमारे समाज के साथ अभिन्न संबंध रहा है। इसका प्रमाण हमारे वेदों, प्राचीन संस्कृत ग्रंथों एवं महाकाव्यों से मिल जाता है। एक सुसभ्य एवं सुसंस्कृत समाज की गरिमा के परिचायक के रूप में संगीत का प्रयोग होता रहा है। संगीत शिक्षा की यह अमृतधार मुसलमानों के आगमन से पहले तक अविरल रूप से चलती रही। तत्पश्चात् संगीत शिक्षा के मार्ग में अनेक उतार-चढ़ाव आए।
कला दर्शन - डाॅ. हरद्वारी लाल शर्माकला और संस्कृति - वासुदेव शरण अग्रवालभारतीय कला और संस्कृति की भूमिका - भगवतशरण उपाध्यायभारतीय संगीत एवं मनोविज्ञान - वसुधा कुलकर्णी