International Research journal of Management Science and Technology
ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
भारत में 2000 ई0 पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक बस्ती का स्वरूप, अर्थव्यवस्था, समाजिक संगठन तथा धर्म: एक पुरातात्तिवक अवलोकन
1 Author(s): DR. SACHCHIDA NAND UPADHYAY
Vol - 8, Issue- 6 , Page(s) : 380 - 383 (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
हडप्पा स्भ्यता के पतन के पश्चात भरतीय उपमहादीप में 2000 से 500 ईसा पूर्व के बीच अनेक ग्रामीण संस्कृतियाँ विकसित हुई। इनमे से कुछ संस्कृतियाँ में ताँबे तथा पत्थर के औजारो का सम्मिलत प्रयोग होता था। इसी कालखंड में ताम्रपाषण से लौहयुग की ओर संक्रमण हुआ साथ ही अंतिम व्यवस्था तक द्वितिय नगरीकरण के चिन्ह भी दृष्टिगोचर हुए। वस्तुतः भारत में जिस समय सैधव सभ्यता अपनी चमक खो रही थी, उस समय कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ताम्र के उपयोग के साथ कुछ कृषक बस्तियाँ अपना विकास तीव गति से कर रही थी। इन बस्तियों ने ताम्र धातु का उपयोग करना तो शुरू कर दिया था, परन्तु अभी भी व्यापक पैमाने पर पाषाण उपयोग जारी था। इसलिए इन्हे ताम्रपाषाणिक बस्तियों के रूप में जाना जाता है। अलग-अलग अनेक क्षेत्रों में ताम्रपाषाणिक का उपयोग करने वाली अनेक बस्तियों एक ही समय में अस्तित्व में थी, किन्तु इन बस्तियों में स्थानीय प्रवृत्तियाँ हावी थी। सैधव सभ्यता के विभिन्न स्थलांे को भांति इनमें आपस में कोई बहुत बड़ी समानता नही थी, इसलिए अलग-अलग बस्तियों अलग-अलग नामों से जाना जाता हेै। फिर संस्कृतियों के अध्य्यन का महत्व इस बात में है कि लगभग ये सभी संस्कृतियों अपने स्वरूप में ग्रामीण तथा कृषि एवं पशुपालन पर आधारित थी। आगे चलकर ये संस्कृतियाँ सामान्य भारतीय जीवन में घुल मिल गई।