International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

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चन्द्रकुँवर बत्र्वाल के काव्य में मध्यकालीन चेतना

    1 Author(s):  DR. MEENA NEGI

Vol -  6, Issue- 1 ,         Page(s) : 319 - 322  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

मध्यकाल में पार लौकिक दृष्टि से मनुष्य इतना अधिक आच्छन्न था कि उसे अपने परवेश की शुद्व ही नही थी। आधुनिक बोध इस लोक की सत्ता में उसकी सत्यता में विश्वास करता है, अपने आस-पास के जीवन के प्रति आधुनिक मन की सहज प्रकृति या जुड़ाव था। मध्यकालीन मन का भाग्यवाद और ईश्वर में विश्वास होता है।

1. जगमोहन ‘आजाद‘ (संपा0) 2012 “प्रकृति के कवि चन्द्रकुँवर बत्र्वाल” विनसर पब्लिसिंग कम्पनी पृष्ठ-32
2. वही पृष्ठ-34
3. वही पृष्ठ-51
4. वही पृष्ठ-55
5. बुद्विबल्लभ थपलियाल ‘श्रीकंठ‘ (संपा0) 1999 “चन्द्रकुँवर काव्य संहिता” जय श्री ट्रस्ट देहरादून पृष्ठ-2
6. वही पृष्ठ-68
7. उमाशंकर सतीश (संपा0) 1981 “चन्द्रकुँवर बत्र्वाल की कविताएं” सरस्वती प्रकाशन दिल्ली पृष्ठ-2
8. वही पृष्ठ-27
9. वही पृष्ठ-32
10. शम्भुप्रसाद बहुगुणा (संपा0) 1946 “नंदिनी” आई0टी0काॅलेज लखनऊ, पृष्ठ-54

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