International Research journal of Management Science and Technology
ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST
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आधुनिक संस्कृत साहित्य में “डाॅ0 भास्कराचार्य त्रिपाठी“ का स्थान
1 Author(s): DR. MADHUKARACHARYA TRIPATHI
Vol - 7, Issue- 6 , Page(s) : 68 - 77 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
(डाॅ0 आर0के0 सर्राफ पूर्व प्राचार्य उ0शि0 म0प्र0) संस्कृत काव्यधारा वैदिक काल से अनवरत अबाधगति से गतिमान होती चली आ रही है। जिसके परिणामस्वरूप ही लौकिक संस्कृत उत्पन्न होकर अपने काव्यचारूता रसपेशलता से उत्तरोत्तर आदि-काव्य रामायणरूप में प्रकटीभूत हो अद्यावधि प्रवहमान है। कालान्तर में लौकिक साहित्य भी प्राचीन और अर्वाचीन दो नामों से जाना जाने लगा है। जिस प्राचीन साहित्य में कालिदास, भास, भारवि, माघ, भवभूति, दण्डी, बाण सुबन्धु, अश्वघोष, श्री हर्ष, सूद्रक इत्यादि की काव्यधारा में अवगाहन कर काव्य माला निष्कालुष्य हो अर्वाचीन संस्कृत साहित्य के रूप में प्रतिष्ठित होकर सतत् क्रियाशील है।