मध्यकालीन कवियित्री मीराबाई की भक्ति-पद्धति
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Author(s):
DR. FAUZIA NAAZ
Vol - 7, Issue- 5 ,
Page(s) : 86 - 91
(2016 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
Abstract
भक्ति शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘भजसेवायाम’ धातु में क्तिन’ प्रत्यय लगाने से हुई है, जिसका तात्पर्य ईश्वर की सेवा करना या भजन करना है।1 महर्षि शाण्डिल्य के मतानुसार- ‘‘सापरातुरकितरीश्वरे2 अर्थात् ईश्वर में परम अनुरक्ति ही भक्ति है।’ नारद भक्ति सूत्र के अनुसार- ‘‘भक्ति ईश्वर के प्रति परम पे्रम रूपा और अमृतस्वरूपा हैं3 भागवतकार का कथन है कि-‘‘सांसारिक विषयों का ज्ञान देने वाली इन्द्रियों की स्वाभाविक प्रकृति जब निष्काम भाव से भगवदोन्मुख होती है, तब उसे भक्ति की संज्ञा प्रदान की जाती है।4 आचार्य वल्लभ का मत है-‘‘भगवान में साहात्म्यपूर्वक सुदृढ़ और स्नेह की भक्ति है। मुक्ति का इससे सरल उपाय नहीं है।5
- डाॅ0 हाँसिला प्रसाद सिंह: सूर काव्य मीमांसा, पृ0-37
- शाण्डिल्य-भक्ति सूत्र-2
- नारद-भक्ति-सूत्र 1-6
- श्री मदभागवत-1/2/6
- तत्त्वदीय निबन्ध-श्लोक-46
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद-10
- 7 से 10 वहीं पद क्रमशा 22, 46, 25, 45, 65, 61 तथा 94 वहीं, पद-39
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद-3 डा0 प्रति
- श्रीमदभागवत 3/29/10
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद- 107
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद-58 डाॅ0 प्रति तथा पद 101 काशी प्रति
- वहीं, पद 69 (डा0 प्रति) तथा 84 (काशी प्रति)
- मीरा मन्दाकिनी, पद-94
- वही पद-25, डा0 प्रति
- रमानाथ शर्मा: सिद्धान्त रहस्य षोडश ग्रन्थ, श्लोक 7-8
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ पद-101 काशी प्रति
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद, 12 डा0 प्रति
- मीरा मन्दाकिनी, पद-53
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद-47, डा0 प्रति
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद-47, डा0 प्रति
- वहीं, पद-25
- डा0 धीरेन्द्र शर्मा हिन्दी साहित्य कोष, भाग, 1 पृ0-270
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ, पद-85
- वहीं, पद-8
- वहीं, पद,-16
- मीरा मन्दाकिनी, पद-79
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ पद-15, 58 50 प्रति
- मीरा मन्दाकिनी, पद-39
- वहीं, पद,-60, 117
- वहीं, पद,-15, 70 तथा 91
- मीरा स्मृति-ग्रन्थ पद-10, डा0 प्रति
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