International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

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ई गवर्नेन्स के दवारा प्रशासन की नैतिक क्षमता का अध्यन

    1 Author(s):  VINAY KUMAR SRIVAS

Vol -  6, Issue- 9 ,         Page(s) : 104 - 108  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

सरकारी कामकाज को ‘हाइटेक’ करने तथा कामकाज की प्रक्रियाओं को सरल-सहज बनाने और आम जनता की दिक्कतें दूर करने के लिए ई-सुविधाएं या ई-गवर्नेन्स की परिकल्पना की गई है। भारत सरकार ने इसके लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं एवं लक्ष्य घोषित कर लिए हैं। व्यवहारिक रूप से यदि देखा जाये तो यह शासन प्रणाली इतिहास में मानव सभ्यता के उदय से ही विद्यमान रही है क्योंकि मुख्य रूप से शासन का कार्य राज्य में कानून व्यवस्था बनाये रखना जनता का कल्याण करना रहा है। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’ में प्रजा के हित को राजा का परम कर्तव्य बताते हुए लिखा है: ‘‘प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा की भलाई में ही राजा की भलाई; राजा को जो अच्छा लगे वह हितकर नहीं है वरन हितकर वह है जो प्रजा को अच्छा लगे।’’अर्थशास्त्र के इस उद्धरण से यह बात निकलकर आती है कि शासन के मूल में जनकल्याण की भावना होनी चाहिए। लोकतांत्रिक सरकारों में शासन की मूल भावना को नहीं बदला गया परन्तु उनकी शासन प्रणाली की प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन अवश्य आये। संसदीय लोकतंत्र की स्थापना से एक ऐसी प्रणाली (नौकरशाह) का उदय हुआ जिसने सरकार एवं जनता (राजा एवं प्रजा) के बीच की दूरियों को बढ़ाने का कार्य किया। लालफीताशाही, भ्रष्टाचारी व लेटलतीफी जैसी बुराइयों से ग्रस्त इन अफसरों का जनता से कोई सरोकार नहीं रह गया जिससे तीव्र विकास एवं समान वितरण की प्रक्रिया में बाधा आयी। प्रशासन की प्रक्रिया को सरल बनाने, नौकरशाहों को अधिक जबावदेह बनाने तथा नागरिकों के अनुकूल प्रशासनिक व्यवस्था करने के लिए ई-गवर्नेन्स की अवधारणा पर अधिक बल दिया जाने लगा।

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