International Research journal of Management Science and Technology

  ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST

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प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का जनजातीय समाज पर प्रभाव (झाबुआ जिले के मेघनगर विकासखंड के विशेष संदर्भ में)

    2 Author(s):  PRAMILA WASKEL , DINESH GATHE

Vol -  6, Issue- 4 ,         Page(s) : 21 - 26  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST

Abstract

जनजातीय समाज जो कि अपने प्रारंभिक समय से ही जंगलों में निवास करता आ रहा है और अभी भी जंगलों में ही निवास कर रहा है। यही कारण है कि जनजाति समाज अपने प्रारंभिक समय में ही नहीं अपितु वर्तमान में भी प्रकृति से निकटता बनाए हुए है। यदि जनजातीयों के निवास का अध्ययन किया जाए तो आज भी विश्व की अधिकंाश जनजातीयाँ नगरों से दूर जंगलों में ही निवास करती हुई मिलती है। प्रकृति के बीच एवं विकसीत कहे जाने वाले समाज से दूर रहने के कारण यह समाज पूर्ण रूप से प्रकृति पर ही आश्रित रहा है। यह समाज सामाजिक एवं आर्थिक दोनों ही क्षेत्रों में प्रकृति को ही अपना प्रथम स्थान देता आया है। जनजाति समाज जहाँ एक तरफ अपने सभी सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में जल, जंगल, जमीन वायु आदि की पूजा करता है वहीं प्रकृति से प्राप्त होने वाले संसाधनों पर ही आर्थिक रूप से निर्भर होकर अपना जीवन निर्वाह करता है।

1. चैधरी बी.डी. (1982), ट्राइबल डेवलपमेंट इन इंडिया, इंटर-इंडिया पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली।

2. जोशी विद्युत (1988), ट्राइबल सिचुयेशन इन इंडिया: इश्यूज इन डेवलपमेंट, रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर।

3. जोशी वाय.जी. (1990), ट्राईबल माईग्रेषन, रावत पब्लिकेषन, जयपुर।

4. मेहता पी.सी. (1993), भारत के आदिवासी, शिवा पब्लिशर्स, उदयपुर।


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