International Research journal of Management Science and Technology
ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
गीता में अन्तर्निहित समूह-प्रबन्धन
1 Author(s): JORAWAR SINGH
Vol - 5, Issue- 10 , Page(s) : 153 - 159 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
भारतीय चिन्तकों की मनीषा से निःसृत अनमोल रत्नों में गीता का अतुल्य स्थान है। समग्र गीता का सूक्ष्मतया अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि गीता किसी व्यक्ति की किसी परिस्थिति विशेष के लिए प्रदत्त ज्ञान नहीं है, अपितु गीता सर्वजनोपयोगी कालजयी ग्रन्थ है। गीता केवल कृष्ण का युद्ध से विरत हुए अर्जुन के लिए उपदेशमात्र नहीं है, अपितु संसाररूपी महाभारत में स्वकत्र्तव्यविमुख, किंकत्र्तव्यविमूढ, मोहग्रस्त प्रत्येक मानव के लिए समस्त संशयों का उच्छेद कर, तिमिराच्छन्न रात्रि को भेद, ज्ञान व कर्म का प्रकाश करने वाला अप्रतिम शास्त्र है। गीता में वर्णित कर्मयोग, ज्ञानयोग, आत्ममीमांसा आदि समस्त विषय सर्वकालोपयोगी हैं। इन्हीं विषयों में गूढ रूप से निहित प्रबन्धन कौशल भी गीता की अपनी विशेषता है।