International Research journal of Management Science and Technology
ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST
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प्रेम की बदलती परिभाषा में सूफियाना प्रेम
1 Author(s): RAKHI VERMA
Vol - 5, Issue- 12 , Page(s) : 162 - 165 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
भारत के मार्टिन लूथर किंग, महाकवि कबीर ने प्रेम को ‘ढाई आखर’ कहा है। यही ढाई आखर अपना रूप बदल-बदल विभिन्न रूपों मं दिखाई देता है। प्रेम केवल एक अर्थ से नहीं जुड़ा हुआ है बल्कि प्रत्येक संबंध में इसका रूप बदलता रहा है। माँ- पिता, भाई, बहन, पत्नी, पे्रमिका, राष्ट्र, प्रवृत्ति इत्यादि सबसे जुडे़ हुए भावों को प्रेम कहा गया है। प्रत्येक व्यक्ति प्रेम को अलग-अलग रूपों की संज्ञा देता है। किसी के नजरिये से प्रेम प्यार होता है, किसी नजरिये से प्रेम कोमल व्यवहार, क्षमा, दया, परोपकार इत्यादि होता है। इसका वास्तविक अर्थ क्या है, यह तय नहीं हो पाया है। काल, दशा, स्थिति के अनुसार प्रेम बदलता रहा है, जैसे वासनात्म , पवित्र, निरूछल, आनन्दमय इत्यादि।