International Research journal of Management Science and Technology
ISSN 2250 - 1959 (online) ISSN 2348 - 9367 (Print) New DOI : 10.32804/IRJMST
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कामायनी की पुनव्र्याख्या
1 Author(s): DR. DEEPAK KUMAR
Vol - 5, Issue- 10 , Page(s) : 86 - 93 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMST
‘कामायनी की पुनव्र्याख्या’ पर चर्चा करते है तो समाज की व्याख्या हो जाती है। जयषंकर प्रसाद ने जिन सर्गो का सृजन किया है, उनमें सर्वप्रथम ‘चिन्ता’ सर्ग है। वहाॅं हम देखते है कि जीवन लगभग समाप्त हो चुका है। हिमालय की चोटी पर बैठा मनु भंयकर त्रासदी से गुजर रहा है। जयषंकर प्रसाद ने ‘‘प्राचीन शरतीय ग्रन्थों से कामायनी की धटना को चुना और भारतीय जीवन से उसका निरूपण किया। पुराने जीवन मूल्य अन्तिम कगार पर होते है और उनके पास कोई मार्ग नहीं होता तब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है।’’ प्राचीनता को नवीनत्तम बनाने की समझ अगर किसी में है तो वह व्यक्तित्त्व जयषंकर प्रसाद का था। भीषण त्रासदी के साथ जिस जीवन की उत्पत्ति जयषंकर प्रसाद ने की है वह विचारणीय हैं।